‘नर्क के दरवाजे’ का रहस्य खुला, वैज्ञानिकों ने बताया-क्यों अंदर जाते ही मर जाते हैं लोग, सदियों बाद सामने आया सच
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तुर्की के हिएरापोलिस शहर में एक प्राचीन मंदिर है, जिसे ‘नर्क का द्वार’ कहा जाता है. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जो भी इस गुफा के अंदर जाता है, कभी जिंदा नहीं लौटता. अगर कोई इस मंदिर में प्रवेश करता है तो उसका शरीर नहीं मिलता. यहां तक कि जानवर, पशु पक्षी भी इसमें चले जाएं तो उनकी मौत हो जाती है. इसीलिए इसे ‘गेट टू हेल’ के नाम से भी जाना जाता है. कुछ लोग इसे पाताल लोक जाने का रास्ता भी कहते हैं. यही वजह है कि प्राचीन रोमन और ग्रीक काल से ही लोग इस जगह जाने डरते हैं. लेकिन अब वैज्ञानिकोंं इस रहस्य को सुलझाने का दावा किया है.
डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राचीन यूनानी भूगोलवेत्ता स्ट्रैबो भी यहां आए थे. 2000 साल पुरानी अपनी किताब ‘जियोग्राफिका’ में उन्होंने इसके बारे में बताया है. लिखा है कि यह एक छोटी गुफा है. अंदर इतनी धुंधली कि आप मुश्किल से ही जमीन को देख पाएंगे. जो जीव इसमें भेजे जाते हैं, उनकी मौत हो जाती है. स्ट्रैबो ने गौरैयों को इसमें छोड़ा तो कुछ सेकेंड के अंदर ही वह मर गईं. जो बैल इसमें भेजे जाते हैं, वे तुरंत गिर जाते हैं और मरने के बाद उन्हें वापस खींच लिया जाता है. लेकिन किंवदंती यह भी है कि जिन पुजारियों को नपुंसक बनाकर उनकी मृत्यु के लिए वहां भेजा गया, वे जिंदा वापस लौटे. इस पर स्ट्रैबो ने कहा, शायद ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें नपुंसक बना दिया गया था.
बलि देने के लिए किया जाता था उपयोग
प्राचीन लोककथाओं के अनुसार ‘गेट टू हेल’ का उपयोग कथित तौर पर जानवरों की बलि देने के लिए किया जाता था. इसमें पक्षियों, बैलों और अन्य जानवरों को देवताओं के प्रतीक के रूप में देखा जाता था. मंदिर के खंडहरों पर पक्षियों के कंकाल आप देख सकते हैं. स्तंभों पर देवताओं के शिलालेख बने हुए हैं. सदियों से ये मिथक बना हुआ था.लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसका राज खोला है. वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसका साइंटिफिक सर्वे किया. खुदाई करने वाले फ्रांसेस्को डीएंड्रिया ने कहा कि हमने बहुत आश्चर्यचकित करने वाली चीजें देखीं. यहां एक गर्म स्थान है, जहां जाते ही कई पक्षी मर गए. जब हमने इसकी छानबीन शुरू की तो हकीकत सामने आ गई.
वैज्ञानिकों की टीम ने क्या देखा
2018 में जर्मनी में डुइसबर्ग-एसेन विश्वविद्यालय के ज्वालामुखी जीवविज्ञानी हार्डी पफैन्ज़ के नेतृत्व में एक टीम ने यहां गहनता से जांच की. पता चला कि यहां कार्बनडाई ऑक्साइड का स्तर काफी ज्यादा है. जैसे-जैसे रात होती जा रही थी, C02 का स्तर बढ़ता जा रहा था. यही वह समय होता था जब छोटे जानवरों को अंदर फेंक दिया जाता था. वैज्ञानिकों का कहना है कि मंदिर के नीचे से लगातार जहरीली कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है. यही कारण है कि मनुष्य, पशु और पक्षी इसके संपर्क में आते ही मर जाते हैं. इस मंदिर में जाने का सबसे घातक समय सुबह सुबह का होता है, जब गुफा में पूरी रात गैस तेज होती रहती है. दिन के समय ये कम हो जाती है क्योंकि गैस सूरज की रोशनी से कम हो जाती है.
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FIRST PUBLISHED : March 22, 2024, 15:28 IST
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