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हज से अधिक यहां पहुंचते हैं मुसलमान, भारत से पहुंचे 1 लाख लोग, दुनिया भर के ढाई करोड़ लोग हुए शामिल

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हाइलाइट्स

आशूरा के बाद 40 दिनों की शोक की अवधि के आखिर में कर्बला में आयोजित की जाती है अरबाईन
इस यात्रा को अरबाईन यात्रा या फ‍िर कर्बला वॉक या कर्बला तीर्थयात्रा के रूप में भी जाना जाता है
शिया मुस्लिम इमाम हुसैन इब्‍न अली की शहादत की याद में की जाती है अरबाईन तीर्थयात्रा

Arba’een Pilgrimage Walk: बगदाद. दुनियाभर के श‍िया मुस्लिम समुदाय के लोगों में अरबाईन तीर्थयात्रा खास महत्‍व रखती है. इस तीर्थयात्रा में हज यात्रा से ज्‍यादा मुसलमान पहुंचते हैं. इसको दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक जमावड़े के रूप में भी देखा जाता रहा है. इस साल दुन‍िया भर के करीब 2.5 करोड़ लोगों ने इसमें भाग ल‍िया है. सुन्नी संप्रदाय के पक्षधर रहे दिवंगत पूर्व इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने अपने शासन के दौरान करीब 35 साल के ल‍िए अरबाईन तीर्थयात्रा पर प्रत‍िबंध लगा द‍िया था. इस यात्रा को अरबाईन यात्रा या फ‍िर कर्बला वॉक या कर्बला तीर्थयात्रा के रूप में भी जाना जाता है. इसको आशूरा के बाद 40 दिनों की शोक की अवधि के आखिर में इराक के कर्बला में आयोजित किया जाता है.

एनडीटीवी की र‍िपोर्ट के मुताब‍िक आंकड़ों की माने तो अरबाईन के ल‍िए इस साल भारत से करीब एक लाख से अधिक शिया मुसलमानों ने कर्बला की यात्रा की थी. अरबाईन का मतलब है ‘चालीस’ और यह किसी की मृत्यु के बाद मनाए जाने वाले 40 दिन के शोक की अवधि को दर्शाता है. ये तीर्थयात्रा 61 हिजरी यानी साल 680 में पैगंबर मुहम्मद के पोते और तीसरे शिया मुस्लिम इमाम हुसैन इब्‍न अली की शहादत की याद में की जाती है. कर्बला के युद्ध में यज़ीद के सैन‍िकों ने इमाम हुसैन का सिर काटकर उऩको शहीद कर दिया था और परिवार को कैद कर लिया था.

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ऐसा कहा जाता है कि इमाम हुसैन के पास केवल 72 सैनिक थे, लेकिन फिर भी उन्होंने अत्याचारी यजीद की सेना, जिसकी संख्या एक लाख से अधिक थी, के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी. लड़ाई के दौरान उनके भाई और वह दोनों मारे गए. साथ ही उनके 6 माह के बेटे को भी मार डाला गया था. इमाम हुसैन के बलिदान का हर साल सम्मान किया जाता है और दुनिया भर से करोड़ों श्रद्धालु शिया मुसलमान अपने दिवंगत नेता के लिए शोक मनाने के लिए इराक जाते हैं. इमाम हुसैन का पव‍ित्र स्‍थान, जो उनका दफन स्थल भी है, कर्बला में हजरत इमाम हुसैन दरगाह है.

कर्बला की पैदल यात्रा के रास्‍तों पर स्वयंसेवक तीर्थयात्रियों के लिए भोजन, आवास समेत कई दूसरी सेवाएं मुफ्त उपलब्‍ध कराते हैं. कुछ तीर्थयात्री करीब 500 किलोमीटर दूर इराक के बसरा या करीब 2,600 किलोमीटर दूर ईरान के मशहद और दूसरे शहरों से सड़क के रास्‍ते यात्रा पूरी करते हैं. इस पैदल यात्रा को शिया विश्‍वास और एकजुटता का प्रदर्शन माना जाता है. जाबिर इब्‍न अब्द अल्लाह, अतियाह इब्‍न साद के साथ 61 हिजरी की अरबाईन में हुसैन इब्‍न अली के पहले तीर्थयात्री थे.

तीर्थयात्रा मार्ग मध्य इराक में नजफ से होकर राजधानी बगदाद से करीब 160 किमी और कर्बला से 75 किमी दूर जाती है. तीर्थयात्री नजफ से पैदल चलकर दरगाह तक पहुंचते हैं. यह मुश्किल हो सकता है क्योंकि दिन का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है और यात्रा में 3 दिन लग सकते हैं.

पैदल यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों के लिए भोजन की आपूर्ति, छोटे क्लीनिक और कि दंत चिकित्सक भी उपलब्ध होते हैं. ये सभी सुविधाएं मुफ्त मिलती हैं. कर्बला की सड़कों के किनारे तंबू लगाकर आवास, भोजन, पानी और चिकित्सा सेवाएं उपलब्‍ध कराई जाती हैं. तीर्थयात्री अलग-अलग रंग के झंडे लेकर चलते हैं. इनमें इमाम हुसैन के शोक का काला झंडा सबसे आम है.

इस बीच देखा जाए तो इस साल भारत से न केवल एक लाख से ज्यादा शिया मुसलमानों ने हिस्सा लिया, बल्कि कई बार उन्हें भारतीय झंडा लिए हुए भी देखा गया. उनकी सुविधा के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की गई और जगह-जगह विशेष तंबू भी लगाए गए, जिनमें भारतीय भोजन उपलब्ध कराया गया.

Tags: Haj yatra, Islam religion, Karbala, Muslim religion, Religious Places

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