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Hanuman Katha: हनुमान जी की परीक्षा लेने आई थी सुरसा नामक राक्षसी, जानें क्या था उसका उद्देश्य

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हाइलाइट्स

देवताओं ने सुरसा को आदेश दे हनुमान जी की परीक्षा हेतु भेजा.
सुरसा ने राक्षसी बन हनुमान जी के बल-बुद्धि की परीक्षा ली.

Hanuman Katha: जब पवनपुत्र हनुमान उड़कर सीता माता की खोज में लंका की ओर जा रहे थे, तब अनेक राक्षस उनके सम्मुख आए, जिनका एक मात्र मकसद हनुमान जी को लंका जाने से रोकना था परंतु क्या आपको पता है कि उन सभी राक्षसों में से एक को स्वयं देवताओं ने श्री हनुमान जी महाराज के बुद्धि एवं बल की परीक्षा लेने भेजा था? अगर नहीं तो हम बताते हैं आपको उस वाक्या के बारे में.

सुन्दरकाण्ड में वर्णन आता है कि जब हनुमान जी लंका की ओर उड़ चले तो सबसे पहले उन्हें समुद्र देव ने उड़ते देखा और सोचा कि  उड़ते उड़ते हनुमान जी को थकान हो गयी होगी, क्यों ना उनके आराम का कुछ प्रबंध किया जाए. इसके लिए उन्होंने अपने ही अंदर समाए मैनाक पर्वत से ऊपर आने के लिए कहा, जिससे हनुमान जी थोड़ी देर उस पर विश्राम कर सकें.

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मैनाक पर्वत ने विश्राम के लिए जगह दी
मैनाक समुद्र के ऊपर आए,  जिस पर हनुमान जी ने मैनाक का परिचय एवं उनका रास्ता रोकने का कारण पूछा, मैनाक बोले, “हनुमान! मैं आपके पिता वायु देव का मित्र मैनाक पर्वत हूं, आप मेरे ऊपर कुछ देर विश्राम करें, इसी हेतु से मुझे समुद्र देव ने आपके सम्मुख भेजा है.”

यह सुनकर हनुमान जी ने सर्वप्रथम मैनाक को रिश्ते में अपना काका होने के नाते प्रणाम किया और भगवान राम के कार्य को पूर्ण किये बिना आराम ना करने के संकल्प के बारे में बताकर आगे बढ़ चले.

देवों ने सुरसा को परीक्षा लेने भेजा
इधर लंकापति रावण के भय के कारण सभी देवता पाताल में चले गए थे, हनुमान जी को लंका जाता देख उन्होंने उनके बल-बुद्धि का परीक्षण करना आवश्यक समझा. उन्हें लगा कि हनुमान जी लंका जाकर रावण का सामना कर भी पाएंगे या नहीं. इस हेतु से उन्होंने सुरसा को आदेश दे हनुमान जी महाराज की परीक्षा लेने भेजा.

सुरसा ने ली हनुमान जी की परीक्षा
सुरसा राक्षसी का रूप बनाकर हनुमान जी के सम्मुख आई और बोली, “वानर, आज तू मेरा आहार बनकर आया है, मैं तुझे खाऊंगी.” इस पर हनुमान जी बोले, “देवी, एक बार मैं प्रभु श्री राम का कार्य पूर्ण कर आऊं, फिर आप मुझे खा लेना परन्तु अभी मुझे जाने दो.” परंतु जब बहुत मनाने पर भी सुरसा नहीं मानी तो हनुमान जी ने कहा, “अच्छा ठीक है, खाओ मुझे.” हनुमान जी की बात सुनते ही सुरसा ने 16 योजन का मुख बनाया और हनुमान जी की ओर बढ़ी, तभी हनुमान जी ने खुदको उसके मुख का दुगना अर्थात 32 योजन का कर लिया. 

हनुमान जी के बल-बुद्धि से प्रसन्न हुई सुरसा
इस प्रकार सुरसा और हनुमान जी दोनों अपना-अपना आकार बढ़ाते गए, जब हनुमान जी ने देखा कि सुरसा का मुख 100 योजन का हो गया है. उन्होंने अपनी बुद्धि लगाई और अति लघु रूप धारण कर जल्दी से उसके मुख से अंदर उसके पेट तक जाकर बाहर आ गए और बोले, “माता! मैं आपके पेट से निकला हूं. अब मैं आपका पुत्र हुआ, अब तो आप मुझे नहीं खाएगी ना?”

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यह सुन सुरसा अत्यधिक प्रसन्न होकर हनुमान जी को अपने आने का हेतु बताते हुए उन्हें उनके कार्य में विजयश्री का आशीर्वाद दे, वहां से अंतर्ध्यान हो गयी. हनुमान जी उन्हें प्रणाम कर पुनः लंका की ओर अग्रसर हुए.

Tags: Dharma Culture, Lord Hanuman, Ramayana

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